Monday, May 19, 2014

▫        जय गौर हरि        ▫

एक बार श्यामसुन्दर सुंदर श्रृंगार करके , सुंदर पीताम्बर पहनकर , रंगीन धातुओं से भान्ति-भान्ति के श्रीअंग पर आकृतियाँ बनाकर , खूब सजधज कर निकुञ्ज में गये। तभी एक "किंकरी सखी" उस निकुंज में विराजमान थी।

▪जैसे ही श्रीकृष्ण ने उस गोपी को देखा तो उसके पास आये। भगवान का अभिप्राय यही था कि मैंने इतना सुंदर श्रृंगार किया , गोपी मेरे इस रूप को देखे। जैसे ही पास गये तो गोपी श्रीकृष्ण को देखकर एक हाथ का घुंघट निकाल लेती है और कहती है - खबरदार ! श्यामसुन्दर ! जो मेरे पास आए , मेरे धर्म को भ्रष्ट मत करो।

भगवान को बड़ा आश्चर्य हुआ , बोले - गोपी ! ये तुम क्या कह रही हो ? सभी धर्मों का , कर्मों का फल , सार मेरा दर्शन है। योगी , यति हजारों वर्ष तप , ध्यान करते हैं फिर भी मैं उनको दर्शन तो क्या ध्यान में भी नहीं आता। और तुम्हें स्वयं चलकर दर्शन कराने आ गया तो तुम कहती हो कि मेरा धर्म भ्रष्ट करते हो ?

▪गोपी बोली - देखो श्यामसुन्दर ! तुम हमारे आराध्य नहीं हो। हमारी आराध्या श्रीराधारानी हैं और जब तक किसी भी चीज़ का भोग उन्हें नहीं लगता तब तक वह वस्तु हम स्वीकार नहीं कर सकते क्यों कि हम " अमनिया " नहीं खाते।

इसलिए पहले आप श्रीराधारानी के पास जाओ। जब वे आपके इस रुपामृत का पान कर लेंगी तब आप प्रसाद स्वरुप हो जायेंगे। तब हम आपके इस रूप अमृत के दर्शन के अधिकारी हो जायेंगे। अभी श्रीराधारानी ने आपके रूप के दर्शन किये नहीं , फिर हम कैसे कर सकते हैं क्यों कि सेवक तो प्रसाद ही पाता है।

▫ श्रीराधारमणाय समर्पणं ▫
Photo: ▫        जय गौर हरि        ▫

एक बार श्यामसुन्दर सुंदर श्रृंगार करके , सुंदर पीताम्बर पहनकर , रंगीन धातुओं से भान्ति-भान्ति के श्रीअंग पर आकृतियाँ बनाकर , खूब सजधज कर निकुञ्ज में गये। तभी एक "किंकरी सखी" उस निकुंज में विराजमान थी। 

▪जैसे ही श्रीकृष्ण ने उस गोपी को देखा तो उसके पास आये। भगवान का अभिप्राय यही था कि मैंने इतना सुंदर श्रृंगार किया , गोपी मेरे इस रूप को देखे। जैसे ही पास गये तो गोपी श्रीकृष्ण को देखकर एक हाथ का घुंघट निकाल लेती है और कहती है - खबरदार ! श्यामसुन्दर ! जो मेरे पास आए , मेरे धर्म को भ्रष्ट मत करो।

भगवान को बड़ा आश्चर्य हुआ , बोले - गोपी ! ये तुम क्या कह रही हो ? सभी धर्मों का , कर्मों का फल , सार मेरा दर्शन है। योगी , यति हजारों वर्ष तप , ध्यान करते हैं फिर भी मैं उनको दर्शन तो क्या ध्यान में भी नहीं आता। और तुम्हें स्वयं चलकर दर्शन कराने आ गया तो तुम कहती हो कि मेरा धर्म भ्रष्ट करते हो ? 

▪गोपी बोली - देखो श्यामसुन्दर ! तुम हमारे आराध्य नहीं हो। हमारी आराध्या श्रीराधारानी हैं और जब तक किसी भी चीज़ का भोग उन्हें नहीं लगता तब तक वह वस्तु हम स्वीकार नहीं कर सकते क्यों कि हम " अमनिया " नहीं खाते। 

इसलिए पहले आप श्रीराधारानी के पास जाओ। जब वे आपके इस रुपामृत का पान कर लेंगी तब आप प्रसाद स्वरुप हो जायेंगे। तब हम आपके इस रूप अमृत के दर्शन के अधिकारी हो जायेंगे। अभी श्रीराधारानी ने आपके रूप के दर्शन किये नहीं , फिर हम कैसे कर सकते हैं क्यों कि सेवक तो प्रसाद ही पाता है।

▫ श्रीराधारमणाय समर्पणं ▫

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